Vijay Anand Tripathi

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BHU की लंबाई-चौड़ाई नापते हुए उसका गुणगान करता हुआ कबाड़ी कभी तुलसीदास-सा महाकवि मालूम होता तो कभी सुरेंद्र मोहन पाठक-सा तिलिस्मी जादूगर। उसके पास बिहारीलाल के अलंकार भी थे और काशीनाथ सिंह की गालियाँ भी। रीति कालीन हिंदी साहित्य की अतिशयोक्ति भी और छायावाद की रियैलिटी भी।