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September 22 - October 12, 2019
अभी झपड़िया दिए जाओगे, तब पता चलेगा कि पंजीरी कहाँ बट रही थी।
“तुम हो वही, जिसमें आता है दही। माने कुल्हड़।”
“काम पैंतिस हो गया भाईजी।”
“कुछ पल्ले पड़ रहा है कि अइसे ही औरंगजेब बन रहे हो!”
“ये मठाधीशी बंद करो बे! ज्यादा चौधराहट करोगे तो अबहिएँ पेल दिए जाओगे।”
“आता न जाता, चुनाव चिह्न छाता।” “बाप मरे अँधेरे में, बेटा पावरहाउस।” “हटिया खुली बजाजा बंद, झाड़े रहे कलक्टरगंज।” “मरबे कम, घसीटबे ज्यादा, लंबे हुई जाओगे दो मिनट में।” “पचड़े में पड़ोगे तो अभी लभेड़ हो जाएगी भाई जी।”
“चिर गई? बोलो बे! अभी तो मउज आनी शुरू हुई है।”
यह अलग बात है कि हिंदुस्तान में हर साँवला इंसान खुद को ‘गेंहुआ’ कहलाना पसंद करता है।
देखो हमारा सीधा हिसाब है कि फैलने उतना ही दो जितना पतीले में झोल हो।
“जुगनू बना देते हैं यहाँ। जुगनू समझते हो रे पंडित?”
क्रांति करवाओ पड़ोसी से, खुद मत करो। चाचा नेहरू बनके गुलाब का फूल खोंस लो और नेतागीरी करो, भगत सिंह बनके असेंबली में घुसोगे तो फाँसी पे लटका दिए जाओगे।
कानपुर वह जगह हैं जहाँ ‘चूतिया’ को गाली नहीं मानते। वहाँ गालियाँ जबान का आभूषण होती हैं। पर्सनालिटी का वजन होती हैं और आपके दिल में सामने वाले के लिए मुहब्बत कितनी गहरी है, इस बात का सबसे वाजिब पैमाना होती हैं)।
सच्चाई वाली दुनिया इतनी बोरिंग जगह है कि हम तो हर वो बात सही मान लेते हैं जिसको मानने में हमको मजा आए। हिंदी अखबार में संडे का रंगायन-रूपायन नहीं पढ़ते हो? संडे का अखबार बाकी हफ्ते के अखबार से दो रुपये अधिक कीमत का क्यों आता है? क्योंकि उसको पढ़ने में मजा आता है। अटल बिहारी बाजपेई के बूढ़े घुटने या नरसिम्हा राव के मुँह में क्या रखा है! लेकिन रणबीर और दीपिका का क्या चल रहा है, उसमें मौज है, तो है। अमिताभ का रेखा से चक्कर हो या न हो, हम तो उसे सच मान के चलते हैं।”
“गाँजा पीए राजा, बीड़ी पीए चोर तंबाकू खाए चूतिया, थूके चारों ओर
“डाकिया लाया डाक, भूतिया लाया भूत। लाख टके का सवाल है, कि चूतिया लाया… ?
तुम्हारे जैसे लणभग-सियार लोग ही झूठ-मूठ का हल्ला बना के रखे हैं बनारस का। गंगा नहाने आते हैं और लंगोटी के साथ गोटी भी चोरवा के वापस।”
BHU की लंबाई-चौड़ाई नापते हुए उसका गुणगान करता हुआ कबाड़ी कभी तुलसीदास-सा महाकवि मालूम होता तो कभी सुरेंद्र मोहन पाठक-सा तिलिस्मी जादूगर। उसके पास बिहारीलाल के अलंकार भी थे और काशीनाथ सिंह की गालियाँ भी। रीति कालीन हिंदी साहित्य की अतिशयोक्ति भी और छायावाद की रियैलिटी भी।
“वो चार साल में में पाँच ब्वायफ्रेंड, तेरह भाई और और छह पक्के वाले दोस्त बनाएँगी। इन पाँच, तेरह और छह— यानी चौबीस— लड़कों के मोहोब्बत का करियर कुमार गौरव की तरह उठेगा और रोनित राय की ही तरह घुस जाएगा। ब्वायफ्रेंड, भाई और दोस्त आपस में आइडेंटिटी बदल-बदल के कन्फ्यूज हो जाएँगे कि साला वो हैं क्या आखिर? लड़की से उनका रिश्ता क्या है? भाई? दोस्त? आशिक? आदमी? पजामा? सलवार? कददू? तरोई? या घुइंया?”
भैरवनाथ सबको यही सिखाते हैं कि अपने हिसाब की मौत पाने के लिए अपने तरह वाली जिंदगी को त्यागना बहुत जरूरी है।
“क्योंकि या तो उन्होंने किसी से मुहब्बत नहीं की या फिर उनसे किसी ने मुहब्बत नहीं की।”
गंगा जी सब को वैसे ही लगती हैं जैसे वो खुद होती हैं। उदास के लिए उदास। थके हारे के लिए थकी। खुशमिजाज के लिए खुश। कमले के लिए कमली।
यदि आप इंजीनियर हैं तभी आप इस सुख को समझ पाएँगे, कि जब आपका पक्का दोस्त बिगड़ जाता है, तो दुनिया में उससे अधिक सुखद कुछ भी नहीं है।
प्यार दस्त की तरह ही होता है, कभी भी किसी को भी लग जाता है, कितनी बार भी लग सकता है और और जब लगता है तो जब तक इंसान को निचोड़ नहीं लेता तब तक छोड़ता नहीं है। फिर सीधे आत्मा निकाल के मानता है।”
एक दिन फुफकारते हुए साँप की गर्दन पकड़कर कह रही थीं, “ये हिजज- हिजज क्या लगा रहा है। हिज नहीं हर बोलो। तुमको क्या लगता है कि दुनिया में एक ही जेंडर एग्जिस्ट करता है। हाउ डेयर यू इग्नोर एनदर जेंडर। इंडिया में फीमेल और मेल गिनती में बराबर हैं।”
टिपिकल हिंदुस्तानी लड़ाई वह खास किस्म की लड़ाई होती है जिसमें कमजोर आदमी तब तक शामिल नहीं होता हैं जब तक यह पक्का नहीं हो जाता कि पलड़ा किसका भारी है और जीतने की सारी प्रोबेबिलिटी किस टीम की है। और जैसे ही जीतने का सीन क्लियर हो जाता है, लड़ाई में वे सारे लोग भी शामिल हो जाते हैं जिन्होंने जीवन में आज तक किसी पर हाथ न छोड़ा हो।
“प्यार दुनिया की सबसे अच्छी बात है ही इसलिए क्योंकि उसके पीछे कोई वजह नहीं होती। कोई लॉजिक नहीं होता। जो बातें समझ आ जाती हैं वो
वो साधारण हो जाती हैं। क्योंकि उनमें कोई रहस्य या मिस्ट्री शेष नहीं रहता। सम्मोहन नहीं रह जाता। इसीलिए बाकी बातें उतनी सुंदर हो ही नहीं सकतीं जितना कि प्यार। जिस दिन इंसान ये समझ गया उसे प्यार क्यों होता है, प्यार भी मैथ्स की थ्योरम की तरह बोरिंग हो जाएगा।”