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अपनी मंजिल तय करने के लिए दिल की सुनो, लेकिन मंजिल तक पहुंचने की रणनीति बनाने के लिए दिमाग का इस्तेमाल करो।
अपने दिल की ही सुनने वाले लोग अक्सर असफल हो जाते हैं। जबकि दूसरी तरफ जो सिर्फ अपने दिमाग की सुनते हैं वो स्वार्थी।
‘यक़ीनन, तुम्हें उदारवादी होना चाहिए। यही भारतीय पद्धति है। लेकिन अंध और मूर्ख उदारवादी नहीं बनना।’
‘ज़िंदगी सिर्फ हमारे चाहने भर जितनी ही नहीं है, बल्कि हमें वो भी करना होता है, जो ज़रूरी होता है। हमारे पास सिर्फ अधिकार ही नहीं हैं। हमारे कर्तव्य भी हैं।’