मुंबई वह सब कुछ थी जिसके होने की मैंने कल्पना की थी और वह सब कुछ भी थी जिसकी मैंने कभी कल्पना भी नहीं की थी। मुंबई तो उस किंवदंतियों वाले हाथी की तरह है जिसका पांच नेत्रहीन आदमी वर्णन करते हैं। हर कोई उसके एक नन्हे से भाग को ही महसूस करता है और आश्वस्त हो जाता है कि उसके वर्णन वाली मुंबई ही असली मुंबई है। यह संस्कृतियों, व्यक्तित्वों, बस्तियों का एक विशाल कड़ाह है और वे सब बिना किसी प्रयास के इसमें घुलमिल जाती हैं और एक नए घालमेल का निर्माण करती हैं जो सबका स्वागत करता है। यह लगभग चमत्कारिक है।