Dharmendra Chouhan

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जब तक लड़कियां पदक जीतकर कॉलेज लाती रहीं, उन्हें सिर-आंखों पर बिठाया जाता रहा। जब तक वे ‘उपयोगी’ रहीं और ‘परफ़ॉर्म’ करती रहीं, सब कुछ अच्छा था। लेकिन जिस पल हालात थोड़ा सा बिगड़े, उन्हें दूध में से मक्खी की तरह निकाल फेंका गया।