Dharmendra Chouhan

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दर्द भयानक था। वह सब कुछ जो कभी लुभावना और दिलचस्प था, अब उबाऊ लगता था। कभी किसी वक़्त जो बहुत सहजता से हो जाया करता था, उसे करने में अब ज़बर्दस्त कोशिश लगती थी। उठना और बिस्तर से निकलना भी अपने आप में एक घोर दंड था। मैं अपने मन के अंधेरे और कपंनी के लिए ख़ालीपन के साथ अंधेरे में लेटे रहना ही पसंद करती थी। मैं चाहती थी कि मुझे अकेला छोड़ दिया जाए।