वे बस कामनाएं ही रहीं जो ताउम्र मुझे सताती रहेंगी और जिन्होंने मुझे एक ऐसा अहम सबक़ सिखाया था जो तब तक मेरे साथ रहेगा जब तक मैं जीवित रहूंगी और भविष्य में लोगों के साथ मेरे बर्ताव को तय करेगा--मुहब्बत की कभी बेइज़्ज़ती न करना, चाहे वह कहीं से भी आए और अपनी बोली और कामों में थोड़ा सा विनम्र, अच्छा और दयालु बनना।