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Kindle Notes & Highlights
कभी किसी को मुकम्मल1 जहाँ नहीं मिलता कहीं ज़मीं तो कहीं आस्माँ नहीं मिलता
हर तरफ़ हर जगह बेशुमार आदमी फिर भी तन्हाइयों का शिकार आदमी
दुनिया जिसे कहते हैं जादू का खिलौना है मिल जाये तो मिट्टी है, खो जाये तो सोना है
मैं उसकी परछाई हूँ या वो मेरा आईना है मेरे ही घर में रहता है मेरे जैसा जाने कौन
हुकूमतों को बदलना तो कुछ मुहाल3 नहीं हुकूमतें जो बदलता है वो समाज भी हो
बे नाम सा ये दर्द ठहर क्यों नहीं जाता जो बीत गया है वो गुज़र क्यों नहीं जाता
बदला न अपने आपको जो थे वही रहे मिलते रहे सभी से मगर अजनबी रहे
तुमसे छुट कर भी तुम्हें भूलना आसान न था तुमको ही याद किया तुमको भुलाने के लिए
कुछ भी बचा न कहने को हर बात हो गयी आओ कहीं शराब पिएँ रात हो गयी
आसमाँ, खेत, समन्दर सब लाल ख़ून काग़ज़ पे उगा था पहले
नयी-नयी आँखें हों तो हर मंज़र अच्छा लगता है कुछ दिन शह्र में घूमे लेकिन, अब घर अच्छा लगता है
तेरा सच है तेरे अज़ाबों1 में झूठ लिक्खा है सब किताबों में एक से मिल के सब से मिल लीजिए आज हर शख़्स है नक़ाबों में
मेरे तेरे चूल्हों में तो इतनी आग नहीं थी जिससे सारा शह्र जला है कोई परचम1 होगा
शह्र तो बाद में वीरान हुवा मेरा घर ख़ाक हुआ था पहले