More on this book
Community
Kindle Notes & Highlights
चाँद में कैसे हुई क़ैद किसी घर की ख़ुशी ये कहानी किसी मस्जिद की अज़ाँ से सुनिए
दुश्मनी लाख सही ख़त्म न कीजे रिश्ता दिल मिले या न मिले हाथ मिलाते रहिए
सूरज को चोचं में लिये मुर्ग़ा खड़ा रहा खिड़की के पर्दे खींच दिये रात हो गयी
फ़ासला चाँद बना देता है हर पत्थर को दूर की रोशनी नज़दीक तो आने से रही
चमकते चाँद सितारों का क्या भरोसा है ज़मीं की धूल भी अपनी उड़ान में रखना
नयी-नयी आँखें हों तो हर मंज़र अच्छा लगता है कुछ दिन शह्र में घूमे लेकिन, अब घर अच्छा लगता है
अबके ख़फ़ा हुआ है तो इतना ख़फ़ा भी हो तू भी हो और तुझमें कोई दूसरा भी हो
मुझसे मुझे निकाल के पत्थर बना दिया जब मैं नहीं रहा हूँ तो पूजा गया हूँ मैं
हर सुब्ह फेकं जाती है बिस्तर पे कोई जिस्म ये कौन मर रहा है किसे ढो रहे हैं हम
कली बना के खिला और फूल-सा महका महक उठूँ तो हवा पत्ती-पत्ती तोड़ मुझे
न जाने कितने बदन वो पहन के लेटा है बहुत क़रीब है फिर भी छुपा-छुपा-सा है
हँसते-हँसते कभी थक जाओ तो छुप के रो लो ये हँसी भीग के कुछ और चमक जाएगी
कहीं छत थी, दीवारो-दर थे कहीं मिला मुझको घर का पता देर से दिया तो बहुत ज़िन्दगी ने मुझे मगर जो दिया वो दिया देर से
हँसने लगे हैं दर्द, चमकने लगे हैं ग़म बाज़ार बन के निकले तो बिकने लगे हैं हम
नींदों के पास भी नहीं अब कोई रागिनी सोते हैं थक के जिस्म मगर जागते हैं ग़म
अभी तक हौसला हारे नहीं शादी ज़मीं वाले अभी तक ख़ुदकुशी करने की हिम्मत है किसानों में
अपनी तलाश, अपनी नज़र, अपना तजुर्बा रस्ता हो चाहे साफ़ भटक जाना चाहिए
हमको भी याद थीं कई रंगीं कहानियाँ पत्थर बना दिए गए ख़ामोश हो गये
बना-बना के बादल, सूरज उड़ा रहा है पानी को सागर तक जाने का रस्ता बहता दरिया भूल गया
जो भी चाहे वो बना ले उसे अपने जैसा किसी आईने का होता नहीं चेहरा अपना
ज़मीन पैरों तले सर पे आसमाँ क्यों है जहाँ-जहाँ जो रखा है वहाँ-वहाँ क्यों है
आते नहीं उतर के सितारे ज़मीन पर जितनी चमक-दमक है वो ऊँचाइयों में है
चाँद-सूरज भी लिखा करते हैं लहरों का हिसाब एक रफ़्तार से बहता नहीं दरिया सबका
हर आदमी में होते हैं दस-बीस आदमी जिसको भी देखना हो कई बार देखना
मुहब्बत नज़र बाँध देती है वर्ना हसीं थे बहुत दिल लगाने के क़ाबिल
बहुत मुश्किल ल है बंजारा मिज़ाजी सलीक़ा चाहिए आवारगी में