“गुरुदेव, मुझे अपना शिष्य स्वीकार कीजिए,” जिज्ञासु ने आग्रह किया। “मुझे बताओ कि तुम कौन हो,” गुरु ने पूछा। “रामचद्रं राव।” “यह तो तुम्हारा नाम है, इसे हटा दो और फिर बताओ कि तुम कौन हो,” गुरु ने फिर कहा। “मैं एक व्यापारी हूँ।” “वह तो तुम्हारा व्यवसाय है, उसे हटा दो और फिर बताओ कि तुम कौन हो।” “मैं एक पुरुष हूँ।” “वह तो तुम्हारा लिंग-भेद है, उसे हटा दो और फिर बताओ कि तुम कौन हो।” “गुरुदेव, इससे आगे मैं नहीं जानता कि मैं कौन हूँ!” “अब ठीक है। किसी जिज्ञासु की यात्रा का पहला चरण यही होता है। जब आप अपने सारे लेबल हटा देते हैं और विशुद्ध आप ही रह जाते हैं, वही हर चीज़ की शुरुआत का प्रारंभिक बिंदु
...more

![पोस्ट न किए गए पत्र [post na kie gae patr]](https://i.gr-assets.com/images/S/compressed.photo.goodreads.com/books/1488562151l/34456049._SY475_.jpg)