विचार तो बने लेकिन व्यक्त नहीं किए गए, भावनाएँ तो महसूस कीं, लेकिन प्रकट नहीं की गईं, तो यह एक अपूर्ण चक्र होता है। और यह अपूर्ण चक्र आपके अवचेतन में हमेशा जीवित रहता है। इसे यदि अलंकारिक भाषा में कहें तो ठहरा हुआ वह अपूर्ण चक्र चश्मे में आई खरोंच की तरह होता है - जिसमें से देखी गई हर चीज़ खरोंच युक्त दिखाई देती है। विडंबना यह होती है कि वह खरोंच उस चीज़ में नहीं होती बल्कि उस माध्यम में होती है जिसमें से हम उस चीज़ को देख रहे होते हैं।