SHAILENDRA TRIPATHI

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लेकिन यदि आप अपने आघात को पाले रखते हैं तो आप ख़ुद को वैसे ही नष्ट कर रहे होते हैं, जैसे तेज़ाब उस पात्र को नष्ट कर देता है, जो उसे सँभाले होता है।
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