में जाने और सफल न हो पाने के लिए इतना बेचैन हो उठना - एक मज़ाक़ ही तो है। मैं इसे कॉरपोरेट तमाशा कहता हूँ क्योंकि या तो कॉरपोरेट के प्रशिक्षण ने, या दो वर्षों के एमबीए के कोर्स ने, या दोनों ने ही ग़लती से उनके कोरे दिमाग़ में ‘सरल सफलता’ या कहें कि ‘सफल होना सरल है’ का विश्वास भर दिया है। ‘सरल सफलता’ या ‘सफल होना सरल है’ ये शब्द ही अनुचित हैं।