SHAILENDRA TRIPATHI

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हम शत्रु के अवगुणों को बड़े ध्यान से देखते हैं, इतने ध्यान से कि आख़िरकार वे हमारे ही अवगुण बन जाते हैं। शत्रु से निपटते-निपटते हम उस शत्रु के जैसे ही हो जाते हैं!
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