और कोई बुराई भी तब इसलिए अच्छाई लगने लगती है कि वह लोगों का ध्यान आकर्षित कर रही होती है। विडंबना तो तब होती है जब कोई अच्छाई भी, बस इसलिए अच्छाई नहीं रह जाती क्योंकि वह लोगों का ध्यान आकर्षित करने में विफल रहती है। दूसरों का ध्यान आकर्षित करना, दूसरों की नज़र में आना - यह अहं की ही ख़ुराक़ है।

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