कुछ दिन पहले मैंने एक कॉरपोरेट तमाशा देखा। वहाँ उन नए युवकों के एक दल को नियुक्त किया गया था जिन्होंने मार्केटिंग में अपना एमबीए पूरा किया ही था। उत्पादों के परिचय और विक्रय कौशल के लिए दिए गए दो सप्ताह के कड़े प्रशिक्षण के बाद उन्हें फ़ील्ड में जाने के लिए कहा गया। फ़ील्ड-सेलिंग में जाने के दो दिन बाद ही उनमें से कुछ बड़े ही टूटे मन और टूटे हौसले के साथ वापस आ गए। जब उनसे उनकी इस हताशा का कारण पूछा गया तो कुछ ने बताया, “समझ में नहीं आ रहा है कि बाज़ार में अपनी पैठ करने और सफल होने में हम अभी तक कामयाब क्यों नहीं हो पा रहे हैं।” दो दिन फ़ील्ड