गप्पबाज़ी यानी आधी-अधूरी व अपुष्ट जानकारी के आधार पर किसी नतीजे पर पहुँच जाना और फिर उस पर अपनी टिप्पणी करना। लेकिन हर गप्पबाज़ अंतत: अपनी लत का शिकार ख़ुद ही हो जाता है। वह दूसरों के बारे में बहुत सचेत हो जाता है और उसका मन इसी उधेड़-बुन में लगा रहता है कि “लोग उसके बारे में क्या कह रहे हैं?” दूसरों के गुण-दोष की समीक्षा न करें, इससे आपके गुण-दोषों की समीक्षा भी नहीं की जाएगी। इस बात का उल्टा भी सच है - यदि आप दूसरों के गुण-दोष की समीक्षा करते फिरेंगे तो फिर आपके गुण-दोष की भी समीक्षा की जाएगी। गप्पबाज़ असल में दूसरों के नज़रिए को संतुष्ट करने के लिए जीते हैं।