है। किसी को उसकी निष्क्रियता की ऊँघ से जगाने के लिए आवाज़ लगा देना - यह प्रेम का विशुद्ध और उत्कृष्ट स्वरूप है। लाड़ तो शराब की लत जैसा होता है। यह आपकी शामों को मज़ेदार तो बना सकता है, लेकिन इससे आपमें कोई बदलाव आने वाला नहीं है। प्रेम ध्यान की तरह होता है। इसमें लगता तो ऐसा है कि कुछ नहीं हो रहा है, लेकिन फिर भी आपमें सब कुछ बदल जाता है। प्रेम पाने की और अपने सृजन की आकांक्षा करें, न कि लाड़ पाने और गर्त में पड़े रहने की। मेरे प्रिय! मेरा तुमसे यह कहना है कि “हो सकता है कि मेरा प्रेम एक ऐसे आवरण में न हो, जैसा तुम चाहते हो, लेकिन मेरा प्रेम एक प्रयोजन पूरा करता है,