यूगोस्लाविया की एग्नेस गॅान्जा बोयाजू तो कलकत्ता के एक कॉन्वेंट स्कूल में पढ़ाने के लिए भारत आई थी - और अनचाहे ही संसार के सामने मदर टेरेसा का करुणावतार अवतरित हो गया था। ‘द नेशनल हेराल्ड’ के एक संपादकीय सदस्य बालकृष्ण मेनन, जिनका हमेशा से यह विश्वास था कि हर साधु एक बड़ा फ़रेबी होता है, स्वामी शिवानंद के पास एक आर्टिकल लिखने के संबंध में पहुँचे और वे अनचाहे ही संसार को स्वामी चिन्मयानंद के रूप में प्राप्त हुए। आप कुछ भी कहें, क्रिस्टोफ़र कोलंबस के लिए अमेरिका था तो एक अनचाहा परिणाम ही।