पहुँचाई गई ठेस एक बार ही घटित होती है लेकिन आप उस घटना की अपने दिमाग़ में फ़िल्म की तरह सैकड़ों, हजारों, बल्कि असंख्य बार घुमा-घुमाकर देखते रहते हैं। जितनी बार आप ऐसा करते हैं, वह चोट, वह ठेस उतनी ही गहराती जाती है। अपनी ही शांति की तुलना में आप अपने भीतर की अशांति के स्रोत को एक ऊँचा आसन दे चुके होते हैं।