पूर्ण जीवन शब्द ही स्वविरोधात्मक है। जीवन तो हमारे एवं प्रत्येक बाह्य वस्तु के बीच एक प्रकार का निरंतर द्वंद्व सा है। प्रतिक्षण हम बाह्य प्रकृति से संघर्ष करते रहते हैं, और यदि उसमें हमारी हार हो जाए, तो हमारा जीवनदीप ही बुझ जाता है। आहार और हवा के लिए निरंतर चेष्टा का नाम ही है जीवन। यदि हमें भोजन या हवा न मिले, तो हमारी मृत्यु हो जाती है। जीवन कोई आसानी से चलनेवाली सरल चीज नहीं है, यह तो एक प्रकार का सम्मिश्रित व्यापार है। बहिर्जगत् और अंतर्जगत् का घोर द्वंद्व ही जीवन कहलाता है। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि जब यह द्वंद्व समाप्त हो जाएगा, तो जीवन का भी अंत हो जाएगा।

