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“तूने बड़ा कठिन मार्ग चुना है सुदामा! ज्ञान-क्षेत्र बड़ा कठिन क्षेत्र है भाई! जब बुढ़ापे के मारे सिर हिलने लगता है, आंखों से सूझता नहीं, कान ऊंचा सुनने लगते हैं, मुंह में जो दांत बच रहते हैं, वे सुविधा के लिए कम, पीड़ा के लिए अधिक होते हैं…ऐसी स्थिति में कहीं लोग, बड़े डरे-डरे कहते हैं कि हां! वह भी थोड़ा-थोड़ा कुछ सोचता है। उदीयमान विद्वान् है...हा-हा-हा।” बाबा एक हथेली पर दूसरी हथेली पटककर हसे, “जब यम सिर पर नाच रहा हो, तब वह उदीयमान विद्वान् होता है। भाई! तुमने गुरु सांदीपनि से दर्शनशास्त्र ही क्यों पढ़ा? कृष्ण के समान शस्त्र-संचालन क्यों नहीं सीखा?”