“इसे तुम प्राप्ति मानोगे?” सुदामा ने तुनककर पूछा। “पूरी बात तो सुनो भाई!” उद्धव अपने गम्भीर स्वर में बोले, “राधा के अनुसार तो उसे अपने मनभावन की प्राप्ति हो गयी है। उससे अधिक की उसे आकांक्षा भी नहीं है। पर दूसरी ओर हमारी रुक्मिणी भाभी हैं। वे भी कृष्ण की भक्ति करती हैं। पर उन्होंने केवल भक्ति ही नहीं की, उनकी कामना भावात्मक धरातल पर ही नहीं रही, वे सक्रिय हुईं। उन्होंने अपने भाई और पिता का विरोध किया। किसी अन्य पुरुष से विवाह न करने पर तुली रहीं। कृष्ण को सन्देश भिजवाया—अर्थात् उन्होंने कर्म किया और उन्हें कृष्ण प्राप्त हुए…।”