सुनोः मैंने इस बर्बादी को दावत नहीं दी थी। मेरे पास न ख़ज़ाना था, न पैसा न ज़मीन या सल्तनत। मैं तो एक फकीर था, ख़ुदा की तलाश में कोने में बैठा एक सूफी। कुछ लोग मेरे गिर्द रोज़ाना, मेरी रोटी पर गुज़ारा कर रहे थे। लेकिन अब मेरठ में जो ज़बर्दस्त आग भड़की थी वह ख़ुदा की मर्जी से दिल्ली आन पहुंची है और इसने इस शानदार शहर को भी जला डाला है। लगता है कि किस्मत में यही लिखा है कि मैं और मेरा वंश हमेशा के लिए बर्बाद हो जाएगा। अभी तो महान तैमूर का नाम ज़िंदा है लेकिन जल्द ही यह नाम मिट जाएगा और हमेशा के लिए भुला दिया जाएगा। यह बेवफा सिपाही, जिन्होंने अपने मालिकों के साथ गद्दारी की और यहां पनाह लेने आए, यह सब
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