बकरईद का त्योहार आने वाला था। ज़फ़र के दरबार के लोगों ने हमेशा यह कोशिश की थी कि शहर की मजहबी एकता कायम रहे और उसे कभी मजहब की बिना पर नहीं बांटा जाए। लेकिन उनकी दहशत की इंतहा नहीं रही, जब उन्होंने देखा कि जिहादी जानबूझकर हिंदुओं के जज़्बात को ठेस पहुंचा रहे हैं। आमतौर से पूरी इस्लामी दुनिया में मुसलमान बकरईद पर हजरत इब्राहीम की कुर्बानी और ख़ुदा की उनके बेटे इस्माईल की जान बचाने में मेहरबानी याद करने के लिए एक बकरा या भेड़ कु़र्बान करते हैं। लेकिन इस बार, जैसा कि मुहम्मद बाकर का कहना हैः