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बकरईद का त्योहार आने वाला था। ज़फ़र के दरबार के लोगों ने हमेशा यह कोशिश की थी कि शहर की मजहबी एकता कायम रहे और उसे कभी मजहब की बिना पर नहीं बांटा जाए। लेकिन उनकी दहशत की इंतहा नहीं रही, जब उन्होंने देखा कि जिहादी जानबूझकर हिंदुओं के जज़्बात को ठेस पहुंचा रहे हैं। आमतौर से पूरी इस्लामी दुनिया में मुसलमान बकरईद पर हजरत इब्राहीम की कुर्बानी और ख़ुदा की उनके बेटे इस्माईल की जान बचाने में मेहरबानी याद करने के लिए एक बकरा या भेड़ कु़र्बान करते हैं। लेकिन इस बार, जैसा कि मुहम्मद बाकर का कहना हैः
“टोंक से आए हुए गाजी इस पर अड़े हुए थे कि वह जामा मस्जिद के सामने खुले मैदान में ईद के दिन एक गाय की कुर्बानी करेंगे। उन्होंने यह भी कहा कि अगर हिंदुओं ने इसका विरोध किया तो वह उनको मार डालेंगे। और हिंदुओं से हिसाब चुकाने के बाद वह सब फिरंगियों को ख़त्म कर देंगे। उनका कहना था कि अगर हमको मजहब के लिए शहीद होना है तो हमको शहादत का दर्जा एक हिंदू को मारकर भी उसी तरह मिल सकता है, जैसे एक फिरंगी को मारकर।”103 इसके कुछ समय बाद, 19 जुलाई को कुछ हिंदू सिपाहियों ने पांच मुसलमान कसाइयों का गला काट दिया, जिन पर उन्होंने गाय जिबह
करने का इल्जाम लगाया। एक आफत उठ खड़ी हुई और पूरे शहर के बीचोंबीच बंट जाने का फौरी ख़तरा पैदा हो गया। यह वह बात थी जिसका ज़फ़र को हमेशा से डर था। देहली में आधे लोग हिंदू थे और वह ख़ूब जानते थे कि अपनी आधी रिआया की मर्जी और ख़ुशी के बगैर हुकूमत करना नामुमकिन होगा। उनकी अपनी मां हिंदू थीं और वह कट्टर उलमा की नाराजगी के बावजूद बहुत सी हिंदू रस्में मानते थे। उन्होंने उस वक़्त बहुत निर्णयात्मक ढंग से...
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लगा दी और आदेश दिया कि अगर कोई भी गाय जिबह करते पकड़ा गया, तो उसे सख़्त सजा दी जाएगी और उसे तोप से उड़ा दिया जाएगा। पुलिस ने भी फ़ौरन इस आदेश पर अमल किया, यहां तक कि उन्होंने अगर किसी कबाब वाले को भी गाय का कबाब लगाते देखा, तो उसे भी गिरफ़्तार कर लिया। उनमें से एक हाफिज अब्दुर्रहमान ने दरबार में दर्ख़ास्त भेजी और कसम खाई कि वह कसाई नहीं है, इसलिए गाय जिबह करने के इल्जाम का जिम्मेदार नहीं था...
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दिया। लेकिन, उसको रिहाई नह...
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फिर ज़फ़र ने आदेश दिया कि शहर की तमाम गायों का पंजीकरण किया जाए और हर मुहल्ले का चौकीदार और जमादार मुकामी पुलिस स्टेशन में सब गाय रखने वाले मुसलमान घरानों का नाम लिखवाये और फिर पुलिस थाना उन तमाम गायों की, जो मुसलमान घरों में पल रही थीं, एक सूची बनाकर क़िले में छह घंटे के अंदर-अंदर भेजे105 और 30 जुलाई को कोतवाल सईद मुबारक शाह को आदेश दिया गया कि वह शहर में ऊंची आवाज़ में ऐलान करा दें कि गायों को मारने पर पूर्ण पाबंदी है क्योंकि इससे बेकार आपस में खिंचाव पैदा हो...
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गायों के मालिकों से लिखवाकर ले लिया गया कि वह अपने जानवरों की क़ुर्बानी की इजाज़त नहीं देंगे।107
आख़िर में मौलवी सरफ़राज़ इस पर राजी हो गए कि वह मुजाहिदीन को इस पर राजी कर लेंगे कि वह ईद के दिन गाय की क़ुर्बानी नहीं करें और उसका गोश्त नहीं खाएं।
ज़फ़र की इन सब सावधानियों की वजह से एक अगस्त को ईद अमन के साथ गुजर गई। अंग्रेज़ों को जिनको अपने जासूसों के जरिए सब बातों का पता था, बहुत निराशा हुई क्योंकि वह
वह उम्मीद कर रहे थे कि यह तनाव एक बड़े फसाद में बदल जाएगा, जिससे उनको फायदा होगा। हर्वी ग्रेटहैड ने अपनी बीवी से एक ख़त में शिकायत की ‘कि यह उन मुसलमानों के साथ कैसा मजाक़ है, जो मजहब के लिए जंग कर रहे हैं कि उनको ईद पर एक ...
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अब तो यह लगता था कि इस वक़्त सबसे अहम इस ताने-बाने को सुलझाना था, जिसकी वजह से दिल्ली जुड़ी हुई थी यानी हिंदू-मुस्लिम आपसी पुरअमन एकता। अगर यह बिगड़ गया तो दोनों
जानते थे कि इसकी बहुत महंगी कीमत चुकानी पड़ेगी।
“बादशाह ने अपना सर हिलाया और कहा, ‘मेरे बच्चो, तुम कुछ नहीं समझते।
सुनोः मैंने इस बर्बादी को दावत नहीं दी थी। मेरे पास न ख़ज़ाना था, न पैसा न ज़मीन या सल्तनत। मैं तो एक फकीर था, ख़ुदा की तलाश में कोने में बैठा एक सूफी। कुछ लोग मेरे गिर्द रोज़ाना, मेरी रोटी पर गुज़ारा कर रहे थे। लेकिन अब मेरठ में जो ज़बर्दस्त आग भड़की थी वह ख़ुदा की मर्जी से दिल्ली आन पहुंची है और इसने इस शानदार शहर को भी जला डाला है। लगता है कि किस्मत में यही लिखा है कि मैं और मेरा वंश हमेशा के लिए बर्बाद हो जाएगा। अभी तो महान तैमूर का नाम ज़िंदा है लेकिन जल्द ही यह नाम मिट जाएगा और हमेशा के लिए भुला दिया जाएगा। यह बेवफा सिपाही, जिन्होंने अपने मालिकों के साथ गद्दारी की और यहां पनाह लेने आए, यह सब
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जाएंगे। जब यह अपने ही अफ़सरों के वफादार नहीं हुए, तो मैं इनसे क्या उम्मीद रखूं? यह मेरा घर तबाह करने आए हैं और वह इसको तबाह कर देंगे तो भाग खड़े होंगे। फिर अंग्रेज़ मेरा सिर काट लेंगे और मेरे बच्चों का भी, और उनको लाल क़िले के ऊपर लगा देंगे। और वह तुममें से भी किसी को नहीं छोड़ेंगे। लेकिन अगर तुममें से कोई बच जाए, तो जो मैं कह रहा हूं वह याद रखना। अगर तुम रोटी का एक टुकड़ा भी मुंह में रखोगे, तो वह ...
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कई दिन पहले जब राजस्थान से नीमच सिपाहियों की एक रेजिमेंट ‘कई हज़ार लोगों के साथ आई, जिनके पास दस मैदानी तोपें और तीन छोटी गोला फेंकने वाली तोपें थीं’, तो उन्होंने रिज पर एक बड़ा सुनियोजित हमला किया। ग्वालियर ब्रिगेड और बारह फील्ड गन्स
की मदद से यह हमला पूरी रात और अगले दिन दो बजे तक चला। दोपहर तक लगभग एक हज़ार सिपाही मारे गए थे। लेकिन ब्रिटिश जख़्मी और मुर्दा सिपाही सिर्फ़ 46 ही थे। हेनरी डेली का कहना था कि ‘यह सबसे ज़्यादा कामयाब और वैज्ञानिक मार थी, जो हमने पांडी को खिलाई थी। उसका नुक़सान बहुत ज़्यादा हुआ, उसका गाड़ियों भर जंगी सामान तबाह हुआ और उसने हमारी शक्ल तक नहीं देखी। यह सबक है, जो हमें अपने सुरक्षा दस्तों को पढ़ाना चाहिए’।12