खींच-तानकर अथवा दिखावे के लिए या लोकलाज के कारण की जाने वाली सेवा आदमी को कुचल देती है, और ऐसी सेवा करते हुए भी आदमी मुरझा जाता है। जिस सेवा से आनन्द नहीं मिलता, वह न सेवक को फलती है, न सेव्य को रुचिकर लगती है। जिस सेवा में आनन्द मिलता है, उस सेवा के सम्मुख ऐश-आराम या धनोपार्जन इत्यादि कार्य तुच्छ प्रतीत होते हैं।