रतिसुख एक स्वतंत्र चर्या है, इस धारणा में मुझे तो घोर अज्ञान ही दिखायी पड़ता है। जनन-क्रिया पर संसार के अस्तित्व का आधार है। संसार ईश्वर की लीलाभूमि है, उसकी महिमा का प्रतिबिम्ब है। उसकी सुव्यवस्थित वृद्धि के लिए ही रतिक्रिया का निर्माण हुआ है, इस बात को समझने वाला मनुष्य विषय-वासना को महाप्रयत्न करके भी अंकुश में रखेगा और रतिसुख के परिणाम-स्वरूप होने वाली संतति की शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक रक्षा के लिए जिस ज्ञान की प्राप्ति आवश्यक हो उसे प्राप्त करके उसका लाभ अपनी सन्तान को देगा।