आज के प्रसिद्ध शायर - निदा फाजली
Rate it:
43%
Flag icon
कभी-कभी तो सफ़र ऐसे रास आते हैं ज़रा-सी देर में दो घंटे बीत जाते हैं।
44%
Flag icon
नई-नई आँखें हों तो हर मंज़र अच्छा लगता है...! कुछ दिन शहर में घूमे लेकिन, अब घर अच्छा लगता है।
49%
Flag icon
कुछ तबीअत ही मिली थी ऐसी, चैन से जीने की सूरत न हुई जिसको चाहा उसे अपना न सके, जो मिली उससे मुहब्बत न हुई।
55%
Flag icon
दिन सलीके से उगा दिन सलीके से उगा                  रात ठिकाने से रही दोस्ती अपनी भी कुछ                  रोज़ ज़माने से रही। चंद लम्हों को ही बनती हैं                  मुसव्विर आँखें ज़िन्दगी रोज़ तो                  तसवीर बनाने से रही। इस अँधेरे में तो                  ठोकर ही उजाला देगी रात जंगल में कोई शमअ                  जलाने से रही। फ़ासला, चाँद बना देता है                  हर पत्थर को दूर की रौशनी नज़दीक तो                  आने से रही। शहर में सबको कहाँ मिलती है                  रोने की जगह अपनी इज़्ज़त भी यहाँ                  हँसने-हँसाने से रही।