Sumit Banerjee

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दया की भी शर्तें होती हैं। एक दिन एक गाय तार में फंस गई थी। उसकी तड़प से मैं द्रवित हो गया। सोचा, इसे निकाल दूं। पर तभी डरा, कि निकलते ही यह खीझ में मुझे सींग मार दे तो! मैं दया समेत उसे देखता रहा। वृद्ध सज्जन मुझे ठीक उस गाय की तरह लगे जो त्रासदायी खाली समय के कंटीले तारों में फंसे थे। मैं उन्हें निकाल सकता था, पर निकाल नहीं रहा था। दया की भी शर्तें होती हैं।
अपनी अपनी बीमारी
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