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तरह-तरह के संघर्ष में तरह-तरह के दुख हैं। एक जीवित रहने का संघर्ष है और एक सम्पन्नता का संघर्ष है। एक न्यूनतम जीवन-स्तर न कर पाने का दुख है, एक पर्याप्त सम्पन्नता न होने का दुख है। ऐसे में कोई अपने टुच्चे दुखों को लेकर कैसे बैठे?
दया की भी शर्तें होती हैं। एक दिन एक गाय तार में फंस गई थी। उसकी तड़प से मैं द्रवित हो गया। सोचा, इसे निकाल दूं। पर तभी डरा, कि निकलते ही यह खीझ में मुझे सींग मार दे तो! मैं दया समेत उसे देखता रहा। वृद्ध सज्जन मुझे ठीक उस गाय की तरह लगे जो त्रासदायी खाली समय के कंटीले तारों में फंसे थे। मैं उन्हें निकाल सकता था, पर निकाल नहीं रहा था। दया की भी शर्तें होती हैं।
‘सोसाइटी फॉर दी प्रिवेंशन आफ क्रुएल्टी टु एनिमल्स’ याने जानवरों पर होने वाली क्रूरता पर रोक लगाने वाले संगठन के एक सदस्य ने बर्फ तोड़ने के कीले से कोंच-कोंचकर अपनी बीवी को मार डाला था। दया की शर्तें होती हैं। हर प्राणी दया का पात्र है, बशर्ते वह अपनी बीवी न हो।
स्मगलिंग यों अनैतिक है। पर स्मगल किए हुए सामान से अपना या अपने भाई-भतीजों का फायदा होता हो, तो यह काम नैतिक हो जाता है। जाओ हनुमान, जे जाओ दवा!
गंवार हँसता है, बुद्धिवादी सिर्फ रंजित हो जाता है।
वे बोले–मुझे यूरोप जाकर समझ में आया कि हम लोग बहुत पतित हैं। मैंने कहा–अपने पतन को जानने के लिए आपको इतनी दूर जाना पड़ा। बुद्धिवादी ने जवाब दिया–जो गिरने वाला है वह नहीं देख सकता कि वह गिर रहा है। दूर से देखने वाला ही उसके गिरने को देख सकता है।
अगर कोई आदमी डूब रहा हो तो, उसे बचाएंगे नहीं, बल्कि सापेक्षिक घनत्व के बारे में सोचेंगे। कोई भूखा मर रहा हो, तो बुद्धिवादी उसे रोटी नहीं देगा। वह विभिन्न देशों के अन्न-उत्पादन के आंकड़े बताने लगेगा। बीमार आदमी को देखकर वह दवा का इंतज़ाम नहीं करेगा। वह विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट उसे पढ़कर सुनाएगा। कोई उसे अभी आकर खबर दे कि तुम्हारे पिताजी की मृत्यु हो गई, तो बुद्धिवादी दुखी नहीं होगा। वह वंश-विज्ञान के बारे में बताने लगेगा।
समाज का पहला फर्ज़ यह है कि वह अपने को नष्ट कर ले। सोसाइटी मस्ट डेस्ट्रॉय इटसैल्फ! यह जाति, वर्ण और रंग और ऊंच-नीच के भेदों से जर्जर समाज पहले मिटे, तब नया बने।
झूठे विश्वास का भी बड़ा बल होता है। उसके टूटने का भी सुख नहीं, दुख होता है।
जिस दिन घूसखोरों की आस्था भगवान पर से उठ जाएगी, उस दिन भगवान को पूछनेवाला कोई नहीं रहेगा।
सालों से देख रहा हूं, सामने के हिस्से में जहां परिवार रहते थे वहां दुकानें खुलती जा रही हैं। परिवार इमारत में पीछे चले गए हैं। दुकान लगातार आदमी को पीछे ढकेलती जा रही है। दुकान आदमी को ढांकती जा रही है।