More on this book
Community
Kindle Notes & Highlights
कई आधुनिक कवि उससे तनाव उधार मांगने आते होंगे।
देश के लिए इतना दुखी आदमी मैंने दूसरा नहीं देखा। सड़क पर चलता, तो दूर से ही दुखी दिखता।
मुझे लगा, जैसे किसी ने पीछे से मेरी कनपटी पर ऐसा चांटा जड़ दिया है कि मेरी आंखों में तितलियां उड़ने लगी हैं।
मूर्खता अमर है। वह बार-बार मरकर फिर जीवित हो जाती है।
आदमी को समझने के लिए सामने से नहीं, कोण से देखना चाहिए। आदमी कोण से ही समझ में आता है।
अच्छा ‘सुपुत्र’ क्या होता है? और ‘धर्मपत्नी’ क्या चीज़ है। धर्मपत्नी होती है, तो अधर्मपत्नी क्या नहीं होती कोई? क्या धर्मादा में किसी पत्नी को ‘धर्मपत्नी’ कहते हैं? विकट कर्कशाएं तक ‘धर्मपत्नी’ कहलाती हैं। इधर एक कर्कशा है, जो पति को पीट तक देती है, पर पति जब उसका परिचय देते हैं, तब कहते हैं–यह मेरी धर्मपत्नी है।
और धर्मपत्नी भी अपने को पतिव्रता समझती है–पति को चाहे पीट लूं, पर पराये आदमी से नज़र नहीं मिलाती।
ऐसा लगा, जैसे सारी बस ही इंजन है और हम इंजन के भीतर बैठे हैं। कांच बहुत कम बचे थे। जो बचे थे, उनसे हमें बचना था। हम फौरन खिड़की से दूर सरक गए।
मातादीन ने कहा–एक मुहावरा ‘ऊपर से हो रहा है’ हमारे देश में पच्चीस सालों से सरकारों को बचा रहा है। तुम इसे सीख लो।
एक दिन मंत्रीजी आए और दो-चार फावड़े चलाकर सफाई सप्ताह का उद्घाटन कर गए। इसके बाद कोई उस कचरे के ढेर को साफ करने नहीं आया। उम्मीद थी कि हर साल यहीं सफाई सप्ताह का उद्घाटन होगा और हर साल 4 फावड़े मारने से लगभग एक शताब्दी में यह कचरा साफ हो जाएगा। मैं इंतज़ार कर सकता हूं पर इस साल दूसरी जगह चुन ली गई।