अपनी अपनी बीमारी
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जिस दिन घूसखोरों की आस्था भगवान पर से उठ जाएगी, उस दिन भगवान को पूछनेवाला कोई नहीं रहेगा।
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पिछले 15-20 सालों में जब-जब वे चुनाव हारे हैं, तब-तब मुझे यह निर्णय लेना पड़ा है कि यह जनतंत्र झूठा है। जनतंत्र झूठा है या सच्चा–यह इस बात से तय होता है कि हम हारे या जीते? व्यक्तियों का ही नहीं, पार्टियों का भी यही सोचना है कि जनतंत्र उनकी हार-जीत पर निर्भर है। जो भी पार्टी हारती है, चिल्लाती है–अब जनतंत्र खतरे में पड़ गया। अगर वह जीत जाती तो जनतंत्र सुरक्षित था।