अपनी अपनी बीमारी
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Read between July 7 - July 14, 2025
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मेरे पास एक आदमी आता था, जो दूसरों की बेईमानी की बीमारी से मरा जाता था। अपनी बेईमानी प्राणघातक नहीं होती, बल्कि संयम से साधी जाए तो स्वास्थ्यवर्द्धक होती है।
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तरह-तरह के संघर्ष में तरह-तरह के दुख हैं। एक जीवित रहने का संघर्ष है और एक सम्पन्नता का संघर्ष है। एक न्यूनतम जीवन-स्तर न कर पाने का दुख है, एक पर्याप्त सम्पन्नता न होने का दुख है।
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दया की शर्तें होती हैं। हर प्राणी दया का पात्र है, बशर्ते वह अपनी बीवी न हो।
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रिटायर्ड आदमी की बड़ी ट्रेजडी होती है। व्यस्त आदमी को अपना काम करने में जितनी अक्ल की ज़रूरत पड़ती है, उससे ज़्यादा अक्ल बेकार आदमी को समय काटने में लगती है।
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पवित्रता का मुंह दूसरों की अपवित्रता के गंदे पानी से धुलने पर ही उजला होता है।
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लोग कहते हैं कि आखिर स्थायी मूल्य और शाश्वत परम्परा भी तो कोई चीज़ है। सही है, पर मूर्खता के सिवाय कोई भी मान्यता शाश्वत नहीं है। मूर्खता अमर है। वह बार-बार मरकर फिर जीवित हो जाती है।
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आप तो 50-60 साल की बात करते हैं। केंचुए ने अपने लाखों सालों के अनुभव से कुल यह सीखा है कि रीढ़ की हड्डी नहीं होनी चाहिए।
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आदमी मर्द नहीं होता, पैसा मर्द होता है।
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वह कहता है–ऐसा जी होता है कि छुरा घुसेड़ दूं। जिसका जी होता है वह छुरा नहीं घुसेड़ता। मारने वाला पहले छुरा घुसेड़ता है, बाद में जी से पूछता है।
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पूरे समाज बीमारी को स्वास्थ्य मान लेते हैं। जाति-भेद एक बीमारी ही है। मगर हमारे यहां कितने लोग हैं जो इसे समाज के स्वास्थ्य की निशानी समझते हैं?
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इंजन सचमुच स्टार्ट हो गया। ऐसा लगा, जैसे सारी बस ही इंजन है और हम इंजन के भीतर बैठे हैं। कांच बहुत कम बचे थे। जो बचे थे, उनसे हमें बचना था।
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‘जनतंत्र’ की सब्ज़ी में जो ‘जन’ का छिलका चिपका रहता है उसे छील दो और खालिस ‘तंत्र’ को पका लो। आदर्शों का मसाला और कागज़ी कार्यक्रमों का नमक डालो और नौकरशाही की चम्मच से खाओ!
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मंथन करके लक्ष्मी को निकालने के लिए दानवों को देवों का सहयोग अब नहीं चाहिए।
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सत्य की खोज करने वालों से मैं छड़कता हूं। वे अकसर सत्य की ही तरफ पीठ करके उसे खोजते रहते हैं।