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इस देश में कुछ लोग टैक्स की बीमारी से मरते हैं और काफी लोग भुखमरी से।
तरह-तरह के संघर्ष में तरह-तरह के दुख हैं। एक जीवित रहने का संघर्ष है और एक सम्पन्नता का संघर्ष है। एक न्यूनतम जीवन-स्तर न कर पाने का दुख है, एक पर्याप्त सम्पन्नता न होने का दुख है। ऐसे में कोई अपने टुच्चे दुखों को लेकर कैसे बैठे?
मैंने पूछा–कहां जाने का इरादा है? यह प्रश्न तुरुप का इक्का है। इसका मतलब है कि आप जा कहीं और रहे हैं, यहां तो यों ही टपक पड़े। इस अर्थ को समझकर आदमी उठ जाता है। मगर आपको यह प्राणघातक जवाब भी मिल सकता है–कहीं नहीं।
व्यस्त आदमी को अपना काम करने में जितनी अक्ल की ज़रूरत पड़ती है, उससे ज़्यादा अक्ल बेकार आदमी को समय काटने में लगती है। रिटायर्ड वृद्ध को समय काटना होता है। वह देखता है कि ज़िंदगी भर मेरे कारण बहुत कुछ होता रहा है। पर अब मेरे कारण कुछ नहीं होता। वह जीवित सन्दर्भों से अपने को जोड़ना चाहता है, पर जोड़ नहीं पाता। वह देखता है कि मैं कोई हलचल पैदा नही कर पा रहा हूं। छोटी सी तरंग भी मेरे कारण जीवन के इस समुद्र में नहीं उठ रही है।
‘इंटलेक्चुअल’ बुद्धिवादी हो गए। हवा में उड़ते हैं, पर जब ज़मीन पर सोते हैं, तो टांगें ऊपर करके–इस विश्वास और दंभ के साथ, कि आसमान गिरेगा तो पांवों पर थाम लूंगा।
मगर मैं सिर्फ थोड़ा मनोरंजन अनुभव कर रहा था। गंवार हँसता है, बुद्धिवादी सिर्फ रंजित हो जाता है।
बुद्धिवादी में लय है। सिर घुमाने में लय है, हथेली जमाने में लय है, उठने में लय है, कदम उठाने में लय है, अलमारी खोलने में लय है, किताब निकालने में लय है, किताब के पन्ने पलटने में लय है। हर हलचल धीमी है। हल्का व्यक्तित्व हड़बड़ाता है। इनका व्यक्तित्व बुद्धि के बोध से इतना भारी हो गया है कि विशेष हरकत नहीं कर सकता। उनका बुद्धिवाद मुझे एक थुलथुल मोटे आदमी की तरह लगा जो भारी कदम से धीरे-धीरे चलता है।
बुद्धिवादी ने जवाब दिया–जो गिरने वाला है वह नहीं देख सकता कि वह गिर रहा है। दूर से देखने वाला ही उसके गिरने को देख सकता है
हम चंदा लेने आए थे। वे समझे, हम ज्ञान लेने आए हैं।
अगर कोई आदमी डूब रहा हो तो, उसे बचाएंगे नहीं, बल्कि सापेक्षिक घनत्व के बारे में सोचेंगे।
पवित्रता का मुंह दूसरों की अपवित्रता के गंदे पानी से धुलने पर ही उजला होता है।
कुछ लोग बड़े चतुर होते हैं। वे सामूहिक पतन में से निजी गौरव का मुद्दा निकाल लेते हैं और अपने पतन को समूह का पतन कहकर बरी हो जाते हैं।
मूर्खता के सिवाय कोई भी मान्यता शाश्वत नहीं है। मूर्खता अमर है। वह बार-बार मरकर फिर जीवित हो जाती है।
कह रहे थे कि आखिर हम बुजुर्गों के जीवन-भर के अनुभव का भी तो कोई महत्त्व है। मैंने कहा–अनुभव का महत्त्व है। पर अनुभव से ज़्यादा इसका महत्त्व है कि किसी ने अनुभव से क्या सीखा। अगर किसी ने 50-60 साल के अनुभव से सिर्फ यह सीखा कि सबसे दबना चाहिए तो अनुभव के इस निष्कर्ष की कीमत में शक हो सकता है। किसी दूसरे ने इतने ही सालों के अनुभव से शायद यह सीखा हो कि किसी से नहीं डरना चाहिए। आप तो 50-60 साल की बात करते हैं। केंचुए ने अपने लाखों सालों के अनुभव से कुल यह सीखा है कि रीढ़ की हड्डी नहीं होनी चाहिए।
बीमार पड़ा तो एक ज्ञानी समझाने लगे–बीमार पड़े, इसका मतलब है, स्वास्थ्य अच्छा है। स्वस्थ आदमी ही बीमार पड़ता है। बीमार क्या बीमार होगा। जो कभी बीमार नहीं पड़ते, वे अस्वस्थ हैं। यह बात बड़ी राहत देने वाली है।
यह इतना व्यापक सवाल था कि इसका जवाब सिवा इसके क्या हो सकता था कि सब ठीक है।
जो नहीं है, उसे खोज लेना शोधकर्ता का काम है। काम जिस तरह होना चाहिए, उस तरह न होने देना विशेषज्ञ का काम है। जिस बीमारी से आदमी मर रहा है, उससे उसे न मरने देकर दूसरी बीमारी से मार डालना डॉक्टर का काम है। अगर जनता सही रास्ते पर जा रही है, तो उसे गलत रास्ते पर ले जाना नेता का काम है। ऐसा पढ़ाना कि छात्र बाज़ार में सबसे अच्छे नोट्स की खोज में समर्थ हो जाए, प्रोफेसर का काम है।
इंजन सचमुच स्टार्ट हो गया। ऐसा लगा, जैसे सारी बस ही इंजन है और हम इंजन के भीतर बैठे हैं। कांच बहुत कम बचे थे। जो बचे थे, उनसे हमें बचना था। हम फौरन खिड़की से दूर सरक गए। इंजन चल रहा था। हमें लग रहा था कि हमारी सीट के नीचे इंजन है।
अब मेरा आत्मविश्वास बहुत बढ़ गया। झूठ अगर जम जाए तो सत्य से ज़्यादा अभय देता है।
हनुमान सुग्रीव के यहां स्पेशल ब्रांच में थे। उन्होंने सीता माता का पता लगाया था। ‘एब्डक्शन’ का मामला था–दफा 362। हनुमानजी ने रावण को सज़ा वहीं दे दी। उसकी प्रॉपर्टी में आग लगा दी। पुलिस को यह अधिकार होना चाहिए कि अपराधी को पकड़ा और वहीं सज़ा दे दी। अदालत में जाने का झंझट नहीं।
मातादीनजी ने इन्वेस्टिगेशन का सिद्धांत समझाया–देखो, आदमी मारा गया है, तो यह पक्का हैं कि किसी ने उसे ज़रूर मारा। कोई कातिल है। किसी को सजा होनी है। सवाल है–किसको सजा होनी है? पुलिस के लिए यह सवाल इतना महत्त्व नहीं रखता जितना यह सवाल, कि जुर्म किस पर साबित हो सकता है या किस पर साबित होना चाहिए। कत्ल हुआ है। तो किसी मनुष्य को सज़ा होगी ही। मारने वाले को होती है, या बेकसूर को–यह अपने सोचने की बात नहीं है। मनुष्य-मनुष्य सब बराबर हैं। सब में उसी परमात्मा का अंश है। हम भेदभाव नहीं करते। यह पुलिस का मानवतावाद है।
जब कुल का सयाना अंधा होता है, तब थोड़े-थोड़े अंधे सब हो जाते हैं। फिर जिसे बुरी बात समझते हैं उसी को करते हैं। अभी देख लो न। दुनिया में सब लड़ाई को बुरा बोलते हैं। सब शांति की इच्छा रखते हैं, पर सब हथियार बनाते जा रहे हैं।
अंतरात्मा की आवाज़ और अनुशासन का झगड़ा था।
है। शेर को अगर किसी तरह एक फूलमाला पहना दो तो गोली चलाने की ज़रूरत नहीं है। वह फौरन हाथ जोड़कर कहेगा–मेरे योग्य कोई और सेवा
नेतागिरी आवाज़ के फैलाव का नाम है।