More on this book
Community
Kindle Notes & Highlights
तरह-तरह के संघर्ष में तरह-तरह के दुख हैं। एक जीवित रहने का संघर्ष है और एक सम्पन्नता का संघर्ष है। एक न्यूनतम जीवन-स्तर न कर पाने का दुख है, एक पर्याप्त सम्पन्नता न होने का दुख है। ऐसे में कोई अपने टुच्चे दुखों को लेकर कैसे
जो देश का काम करता है, उसे थोड़ी बदतमीज़ी का हक है। देश-सेवा थोड़ी बदतमीजी के बिना शोभा ही नहीं देती। थोड़ी बेवकूफी भी मिली हो, तो और चमक जाती है।
दया की शर्तें होती हैं। हर प्राणी दया का पात्र है, बशर्ते वह अपनी बीवी न हो।
गंवार हँसता है, बुद्धिवादी सिर्फ रंजित हो जाता है।
पवित्रता का मुंह दूसरों की अपवित्रता के गंदे पानी से धुलने पर ही उजला होता है।
झूठे विश्वास का भी बड़ा बल होता है। उसके टूटने का भी सुख नहीं, दुख होता है।
इस देश के ज्ञानी या अज्ञानी–सबकी यह विडंबना है कि वह क्रोध से फौरन किस्मत पर आ जाता
झूठ अगर जम जाए तो सत्य से ज़्यादा अभय देता है।
एक बात बताऊं? भीम द्रौपदी को बहुत ‘लव’ करता था। पर द्रौपदी ज़रा अर्जुन की तरफ ज़्यादा थी। कृष्ण अर्जुन का बड़ा दोस्त था। और द्रौपदी भी कृष्ण से अपना दुख कहती थी। पता नहीं, क्या गोलमाल था साब। ये कृष्ण था बहुत दंदी-फंदी आदमी। वह होता तो शकुनि की नहीं चलती। वह साफ झूठ बोल जाता था और कहता था कि यही सच है। वह कपट कर लेता था और कहता था कि इस वक्त कपट करना धर्म है।
सत्य की खोज करने वालों से मैं छड़कता हूं। वे अकसर सत्य की ही तरफ पीठ करके उसे खोजते रहते हैं।