Aishwarya Kala

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सदियों से यह समाज लिखी पर चल रहा है। लिखाकर लाए हैं तो पीढ़ियां मैला ढो रही हैं और लिखाकर लाए हैं तो पीढ़ियां ऐशो-आराम भोग रही हैं। लिखी को मिटाने की कभी कोशिश ही नहीं हुई!
अपनी अपनी बीमारी
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