शारीरिक तप, मनोनिग्रह तथा ओम् का ध्यान मिलकर क्रिया योग बनता है।’’7 ध्यान में सुस्पष्ट सुनायी देने वाले ओम् के ब्रह्मनाद को पतंजलि ईश्वर कहते हैं।8 ओम् सृष्टिकर्ता शब्दब्रह्म है, वह स्पन्दनशील सृष्टियन्त्र का गुंजन है, और ईश्वर के अस्तित्व का साक्षी है।