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Kindle Notes & Highlights
क्रिया योग का दो बार उल्लेख किया है। उन्होंने लिखा है: ‘‘शारीरिक
शारीरिक तप, मनोनिग्रह तथा ओम् का ध्यान मिलकर क्रिया योग बनता है।’’7 ध्यान में सुस्पष्ट सुनायी देने वाले ओम् के ब्रह्मनाद को पतंजलि ईश्वर कहते हैं।8 ओम् सृष्टिकर्ता शब्दब्रह्म है, वह स्पन्दनशील सृष्टियन्त्र का गुंजन है, और ईश्वर के अस्तित्व का साक्षी है।
‘‘उस प्राणायाम द्वारा मुक्ति प्राप्त की जा सकती है, जो श्वास और प्रश्वास के गतिविच्छेद से निष्पन्न होता है।’’
मानव की सांसारिक और आकाशीय परिस्थितियाँ उसे बारह वर्ष के कालचक्र के क्रम में स्वाभाविक उन्नति के उसके मार्ग पर आगे सरकाती हैं।
‘‘जो करने की इच्छा हो वह मत करो, तब तुम जो चाहोगे वह कर सकोगे’’
‘‘यदि मुझे खाने की इच्छा होती, तो मुझे खाना ही पड़ता।’’
दु:ख, भुखमरी और जरा-व्याधि हमारे ही कर्मों के चाबुक हैं जो हमें अंतत: जीवन के सच्चे अर्थ को जानने का प्रयास करने पर विवश करते हैं।’’