मेरी प्रिय कहानियाँ
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वह उन लोगों में से था, जो बरसों तक औपचारिक परिचय की परिधि पर डोलते रहते हैं, न परिधि लाँघकर अन्दर आते हैं और न ही पीछे हटकर आँखों से ओझल होते हैं।
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उम्र के इस हिस्से में पहुँचकर इनसान बुरी खबरें सुनने का आदी हो जाता है और वे दिल पर गहरा आघात नहीं करतीं।
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यहाँ वर्षों बीत जाते हैं, किसी से मेल-मुलाकात नहीं होती, और जब मिलते हैं तो जिंदगी एक और करवट बदल चुकी होती है।
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सच पूछो तो अब तो मैं किसी परिचित से मिलने से भी घबराता हूँ। आँख चुराकर निकल जाना चाहता हूँ। लगता है मिलूँगा तो एक और फर्ज का बोझ सिर पर चढ़ा जाएगा और मन को कचोटने लगा।
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औरतें चहक सकती हैं। मर्द लोग सारा वक्त झींकते-झुंझलाते रहते हैं। राजनीति की बातें करेंगे, सयासतदानों को बुरा-भला कहेंगे, उनकी नज़रों में सभी कुछ गर्त में जा रहा होता है। स्त्रियाँ छोटी-छोटी चीज़ों में से भी सुख के कण बीन लेती हैं। रसोई की बातें छोड़ेंगी तो बच्चों की बातें ले बैठेंगी। बच्चों की छोड़ेंगी तो साड़ियों की चर्चा शुरू हो जाएगी। अकेली साड़ियों की ही चर्चा घण्टों तक चल सकती है। और फिर निन्दा-प्रशंसा और किस्से और गप-शप, औरतें खुश रहना जानती हैं।