जितनी देर कोई मुसाफिर डिब्बे के बाहर खड़ा अंदर आने की चेष्टा करता रहे, अंदर बैठे मुसाफिर उसका विरोध करते हैं, पर एक बार जैसे-तैसे वह अंदर आ जाए तो विरोध खत्म हो जाता है और मुसाफिर जल्दी ही डिब्बे की दुनिया का निवासी बन जाता है, और अगले स्टेशन पर वही सबसे पहले बाहर खड़े मुसाफिरों पर चिल्लाने लगता है, ‘‘नहीं है जगह, अगले डिब्बे में जाओ...घुसे जाते हैं...’’
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