Aditya Rallan

39%
Flag icon
जितनी देर कोई मुसाफिर डिब्बे के बाहर खड़ा अंदर आने की चेष्टा करता रहे, अंदर बैठे मुसाफिर उसका विरोध करते हैं, पर एक बार जैसे-तैसे वह अंदर आ जाए तो विरोध खत्म हो जाता है और मुसाफिर जल्दी ही डिब्बे की दुनिया का निवासी बन जाता है, और अगले स्टेशन पर वही सबसे पहले बाहर खड़े मुसाफिरों पर चिल्लाने लगता है, ‘‘नहीं है जगह, अगले डिब्बे में जाओ...घुसे जाते हैं...’’
Aditya Rallan liked this
मेरी प्रिय कहानियाँ
Rate this book
Clear rating