मेरी प्रिय कहानियाँ
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जितनी देर कोई मुसाफिर डिब्बे के बाहर खड़ा अंदर आने की चेष्टा करता रहे, अंदर बैठे मुसाफिर उसका विरोध करते हैं, पर एक बार जैसे-तैसे वह अंदर आ जाए तो विरोध खत्म हो जाता है और मुसाफिर जल्दी ही डिब्बे की दुनिया का निवासी बन जाता है, और अगले स्टेशन पर वही सबसे पहले बाहर खड़े मुसाफिरों पर चिल्लाने लगता है, ‘‘नहीं है जगह, अगले डिब्बे में जाओ...घुसे जाते हैं...’’
Aditya Rallan liked this
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किसी जमाने में मुझे एक बुजुर्ग ने नसीहत की थी कि सिपाही को सिपाही कहकर मत बुलाओ, हवलदार कहकर बुलाओ, और हवलदार को थानेदार इससे हाकिम नर्म पड़ जाता है। मैंने भी युअर एक्सिलेन्सी कहा तो मजिस्ट्रेट के चेहरे की माँसपेशियाँ ढीली पड़ गईं।
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मन में आया फिर इसे धकेलकर ले चलूँ। लेकिन स्कूटरवाले के दिल में इस बात की आशा सदा बनी रहती है कि अगली किक पर स्कूटर का इंजन चलने लगेगा।
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औरतें रसोई घर में अपनी हुकूमत बनाए रखना चाहती हैं। पति सारा काम करता भी रहे फिर भी कहेंगी। थोड़ी-बहुत मदद करता है।’’ इस पर बगल में खड़ी मेरी पत्नी झट से बोल उठी, ‘‘तुम करते ही क्या हो?
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औरतें चहक सकती हैं। मर्द लोग सारा वक्त झींकते-झुंझलाते रहते हैं। राजनीति की बातें करेंगे, सयासतदानों को बुरा-भला कहेंगे, उनकी नज़रों में सभी कुछ गर्त में जा रहा होता है। स्त्रियाँ छोटी-छोटी चीज़ों में से भी सुख के कण बीन लेती हैं। रसोई की बातें छोड़ेंगी तो बच्चों की बातें ले बैठेंगी। बच्चों की छोड़ेंगी तो साड़ियों की चर्चा शुरू हो जाएगी। अकेली साड़ियों की ही चर्चा घण्टों तक चल सकती है। और फिर निन्दा-प्रशंसा और किस्से और गप-शप, औरतें खुश रहना जानती हैं।