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कबिरा खड़ा बजार में, सबकी माँगे खैर। ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर॥
जैसी प्रीत कुटुंब सो, तैसी हरि सो होय। दास कबीरा यूँ कहे, काज न बिगरे कोय॥
मोको कहाँ ढूँढ़े रे बंदे, मैं तो तेरे पास में। ना देवल में ना मस्जिद में, ना काबे-कैलास में॥ खोजि होय तो तुरंत मिलि हौं, पल भर की तलाश में। कहैं कबीर सुनो भाई साधो, सब साँसन की साँस में॥
मन ऐसा निर्मल भया, जैसे गंगा नीर। पीछे-पीछे हरि फिरें, कहत कबीर-कबीर॥