Sanat Mishra

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तुमने लिखा था कि एक दोष गुणों के समूह में उसी तरह छिप जाता है, जैसे चाँद की किरणों में कलंक; परन्तु दारिद्रय नहीं छिपता। सौ-सौ गुणों में भी नहीं छिपता। नहीं, छिपता ही नहीं, सौ-सौ गुणों को छा लेता है—एक-एक करके नष्ट कर देता है।
आषाढ़ का एक दिन
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