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भ्रम और भरोसा-ये ही हैं जिन्दगी के स्रोत! इन्हीं सोतों से फूटती है जिन्दगी और फिर बह निकलती है-कलकल-छलछल ! कभी कभी लगता है कि ये अलग अलग दो सोते नहीं है । सोता एक ही है-उसे भ्रम कहिए या भरोसा । यह न हो तो जीना भी न हो ! यही