यह नई मुसीबत न उन्हें जीने दे रही थी, न मरने दे रही थी । गाँव पर पुश्तैनी जमीन जायदाद । बाप दादों की धरोहर । न देखो तो कब दूसरे कब्जा कर लें, कहना मुश्किल । पुरखों ने तो एक एक कौड़ी बचा कर, पेट काट कर, जोड़ जोड़ कर जैसे तैसे जमीनें बढ़ाई ही, चार की पाँच ही कींतीन नहीं होने दी और यहाँ यह हाल! जरा सा गाफिल हुए कि मेड़ गायब! महीने दो महीने में कम से कम एक बार गाँव का चक्कर लगाते रही । देख लें लोग कि नहीं, हैं, ध्यान है । हाल चाल लेते रहो, कुशल मंगल पूछते रहो, खुशी गमी में जाते रहो, सबसे बनाए रखो । अधिया या बँटाई पर खेती करो तब भी । दिया बाती और घर दुआर की देख रेख के लिए कोई नौकर चाकर रखी तब भी!