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छाता खुलने से पहले जो पहली बूंद उनकी नंगी, खल्वाट खोपड़ी पर गिरी, उसने इतना वक्त ही नहीं दिया कि वे समझ सकें कि यह बिजली तड़की है या लोहे की कील है जो सिर में छेद करती हुई अन्दर ही अन्दर तलवे तक टुंक गई है! उनका पूरा बदन झनझना उठा । वे बौछारों के डर से बैठ गए लेकिन भींगने से नहीं बच सके । जब तक छाता खुले, तब तक वे पूरी तरह भींग चुके थे!