कालिदास की रचनाओं की प्रशंसा उनके परवर्ती कवियों ने मुक्तकंठ से की है। एक कवि ने कालिदास की सूक्तियों को मधुरस से भरी हुई आम्रमंजरियों के समान बताया है2 एक और कवि ने लिखा है कि ‘कवियों की गणना करते समय कालिदास का नाम जब कनिष्ठिका अंगुली पर रखा गया, तो अनामिका के लिए उनके समान किसी दूसरे कवि का नाम ही न सूझा; और इस प्रकार अनामिका अँगुली का अनामिका नाम सार्थक हो गया। आज तक भी कालिदास के समान और कोई कवि नहीं हुआ।’1 एक और आलोचक ने लिखा है कि ‘काव्यों में नाटक सुन्दर माने जाते हैं; नाटकों में ‘अभिज्ञान शाकुन्तल’ सबसे श्रेष्ठ है; शाकुन्तल में भी चौथा अंक; और उस अंक में भी चार श्लोक अनुपम हैं।2