क्या यही कण्व की पुत्री है? महर्षि कण्व ने यह ठीक नहीं किया कि इसे भी आश्रम के कार्यों में लगा दिया है। इस निसर्ग सुन्दर शरीर को महर्षि कण्व तपस्या के योग्य बनाने की अभिलाषा करके मानो नीलकमल की पंखुरी से बबूल का पेड़ काटने की कोशिश कर रहे हैं। अच्छा, पेड़ों की आड़ से ही कुछ देर इसे जी भर कर देख तो लूँ। (देखने लगता है।)