उसने लिखा, “यदि तुम तरुण वसन्त के फूलों की सुगन्ध और ग्रीष्मऋतु के मधुर फलों का परिपाक एकसाथ देखना चाहते हो; या उस वस्तु का दर्शन करना चाहते हो जिससे अन्तःकरण पुलकित, सम्मोहित, आनन्दित और तृप्त हो जाता है; अथवा तुम भूमि और स्वर्ग की झाँकी एक ही स्थान में देखना चाहते हो, तो ‘अभिज्ञान शाकुन्तल’ का रसपान करो।‘